छपरा में क्या इस बार खेसारी पर भारी पड़ेंगे पूर्व IPS अधिकारी …

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सारण (छपरा), बिहार: कभी भारतीय सेना में देश की सीमाओं पर सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाई, तो कभी कारगिल की बर्फीली चोटियों पर तिरंगा लहराया। अब भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में वरिष्ठ पदों पर काम करने के बाद डॉ. जयप्रकाश सिंह अपने गृह राज्य बिहार लौट आए हैं और एक नए राजनीतिक मिशन के लिए तैयार हैं।

टेघरा गांव, मांझी थाना क्षेत्र, सारण जिले के एक किसान परिवार में जन्मे जयप्रकाश सिंह बचपन से ही उत्कृष्ट छात्र रहे। पटना विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद, वर्ष 1987 में उन्हें भारतीय सेना में कमीशन मिला। 1987 से 1994 तक उन्होंने पंजाब, पुंछ और कारगिल में आतंकवाद-रोधी अभियानों में सक्रिय भूमिका निभाई। सेना में मेजर के पद पर सेवा देने के बाद उन्होंने भारतीय पुलिस सेवा में कदम रखा और हिमाचल प्रदेश कैडर में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। एसपी चंबा-सिरमौर, डीआईजी कांगड़ा, आईजी सतर्कता ब्यूरो और एडीजीपी के रूप में उन्होंने भ्रष्टाचार-रोधी अभियानों और पुलिस प्रशिक्षण में उल्लेखनीय योगदान दिया।

इसके अलावा डॉ. सिंह ने केंद्रीय मंत्रालयों और जनरल वी.के. सिंह के निजी सचिव के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने IIM लखनऊ, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी (इंग्लैंड) और जॉन स्टुअर्ट यूनिवर्सिटी (ऑस्ट्रेलिया) से उच्च शिक्षा प्राप्त की है और उनके लोक सेवा में योगदान के लिए डॉक्टरेट की उपाधि भी मिली।

स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के बाद अब डॉ. जयप्रकाश सिंह ने प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी से जुड़कर बिहार में विकास और सुशासन की दिशा में काम करने का निर्णय लिया है। उनका मानना है कि “देश की सेवा के बाद अब समय अपनी जन्मभूमि की सेवा का है। बिहार में नई सोच और जिम्मेदार नेतृत्व को बढ़ावा देना मेरा उद्देश्य है।”

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में जन सुराज पार्टी ने उन्हें छपरा विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर भाजपा से पूर्व जिला परिषद अध्यक्ष छोटी कुमारी और राजद से भोजपुरी सुपरस्टार खेसारी लाल यादव भी चुनावी मैदान में हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस तीन-तरफ़ा मुकाबले में डॉ. जयप्रकाश सिंह स्थानीय लोगों के लिए एक भरोसेमंद और अनुभवी विकल्प बनकर उभर सकते हैं।

देश की सीमाओं पर सेवा करने वाले इस मिट्टी के बेटे की घर वापसी ने सारण और छपरा में नई राजनीतिक ऊर्जा भर दी है। युवाओं, पूर्व सैनिकों और बुद्धिजीवियों के बीच उनके प्रति उत्साह साफ देखा जा सकता है। अब मांझी की इस नई उम्मीद का उद्देश्य सिर्फ सीमाओं की नहीं, बल्कि अपने क्षेत्र के विकास की लड़ाई में जीत हासिल करना है।

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