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धनबाद नगर निगम चुनाव 2025: भाजपा समर्थक एवं मारवाड़ी समाज से जुड़े कृष्णा अग्रवाल की सोशल मीडिया पोस्ट बनी चर्चा का केंद्र

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धनबाद (DHANBAD): खुद को सामाजिक व राजनीतिक रूप से सक्रिय मानने वाले और भाजपा विचारधारा के समर्थक कृष्णा अग्रवाल ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक विस्तृत राजनीतिक समीक्षा साझा की है। उनकी पोस्ट ने नगर निगम चुनाव से पहले स्थानीय राजनीतिक हलकों में नई बहस को जन्म दे दिया है। उनके तर्कों के केंद्र में धनबाद की बदलती राजनीति, उभरते शक्ति–केंद्र और नेतृत्व की नई स्पर्धा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे शामिल हैं।

नेतृत्व के पुराने ढाँचे का कमजोर होना और नई शक्ति का उदय

कई वर्षों तक धनबाद की राजनीति एक खास राजनीतिक और सामाजिक धड़े के प्रभाव में रही। सिंह मेंशन और रघुकुल का वर्चस्व लगभग चार दशक तक निर्णायक रहा। लेकिन जैसे-जैसे नए नेता उभरे, राजनीतिक समीकरण धीरे-धीरे बदलते गए।
इसी क्रम में ढुल्लू महतो का तेजी से बढ़ता प्रभाव धनबाद की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत मानी जा रही है। तीन बार विधायक और वर्तमान सांसद बनने के बाद उन्होंने अपने समर्थक आधार को अत्यधिक व्यापक बनाया है।

2010 के निगम चुनाव से शुरू हुआ नया संघर्ष

2010 में नगर निगम बनने के बाद पहली बार सत्ता की लड़ाई नये स्वरूप में सामने आई। उपमहापौर नीरज सिंह की हत्या ने स्थानीय राजनीति को हमेशा के लिए दो खेमों में बांट दिया—एक ओर सिंह मेंशन और दूसरी ओर उनके ही रिश्तेदार और विरोधी गुट। यह विभाजन आज तक धनबाद की राजनीति की धुरी बना हुआ है।

पिछले लोकसभा चुनाव ने बदले कई राजनीतिक गणित

कृष्णा अग्रवाल लिखते हैं कि ढुल्लू महतो की भारी जीत ने विपक्ष ही नहीं, भाजपा के भीतर भी शक्ति–संतुलन को नया आकार दिया। कांग्रेस उम्मीदवार अनुपमा सिंह, जो एक बेहद मजबूत राजनीतिक परिवार से आती हैं, उनके बावजूद भारी अंतर से हार गईं—यह परिणाम बताता है कि ढुल्लू महतो अब सिर्फ एक क्षेत्रीय विधायक नहीं, बल्कि लोकसभा क्षेत्र में निर्णायक नेतृत्व बन चुके हैं।

नगर निगम चुनाव 2025 : मुख्य मुकाबले की नई तस्वीर

सबसे अहम विषय है—आगामी नगर निगम चुनाव।
निवर्तमान महापौर चंद्रशेखर अग्रवाल पहले ही दोबारा चुनाव लड़ने की मंशा जता चुके हैं। उनके कार्यकाल के विकास कार्य उनकी दावेदारी को मजबूत बनाते हैं।
इसी बीच राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि ढुल्लू महतो अपनी पत्नी सावित्री देवी को महापौर पद के लिए आगे कर सकते हैं।
इस संभावना ने चुनावी माहौल को और तीखा कर दिया है, क्योंकि यह मुकाबला OBC बनाम OBC होगा—जिससे जातीय राजनीति की परंपरागत रणनीति लगभग अप्रभावी हो जाएगी।

भाजपा के अंदर भविष्य की राजनीति पर बड़ा असर

यदि ढुल्लू महतो अपने समर्थित उम्मीदवार को जीत दिलाने में सफल रहते हैं, तो इसका सीधा असर धनबाद विधायक राज सिन्हा और झरिया विधायक रागिनी सिंह की राजनीति पर पड़ सकता है।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, नगर निगम और जिला परिषद—दोनों पर नियंत्रण मिल जाने से ढुल्लू महतो की पकड़ अभूतपूर्व रूप से मजबूत हो जाएगी, और कोयलांचल की राजनीति लगभग एकध्रुवीय हो सकती है।

विरोधी खेमे की सबसे बड़ी चुनौती—एकता का अभाव

धनबाद की राजनीति में सबसे रोचक बात यह है कि ढुल्लू महतो का विरोध करने वाले सभी बड़े नेता आपस में ही असहमत हैं। सिंह मेंशन, रघुकुल, शहर विधायक, पूर्व सांसद, महापौर—सबके बीच अंतर्विरोध इतने गहरे हैं कि एक संयुक्त चुनौती तैयार कर पाना मुश्किल दिखता है।

यह भी राजनीतिक विश्लेषकों की आम राय है कि विपक्ष की यही अंदरूनी लड़ाई ढुल्लू महतो की सबसे बड़ी ताकत बन सकती है।

चुनाव अभी दूर, लेकिन राजनीतिक तापमान चरम पर

नगर निगम चुनाव की घोषणा भले कुछ माह बाद हो, लेकिन राजनीतिक समीकरणों की गर्मी अभी से पूरे जिले में महसूस की जा रही है।
नेता, संगठन, सत्ता और रणनीति—सब एक नई दिशा की ओर बढ़ते दिख रहे हैं।
धनबाद एक बार फिर झारखंड की राजनीति के केंद्र में है, और आने वाले महीनों में घटनाक्रम और भी रोचक होने वाला है।

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