“जोहार गुरुजी: झारखंड की आत्मा को नम आंखों से अंतिम विदाई”

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रांची से एक भारी मन वाली खबर—झारखंड की राजनीति, आदिवासी अस्मिता और सामाजिक चेतना के पुरोधा, दिशोम गुरु शिबू सोरेन अब हमारे बीच नहीं रहे। मगर उनके संघर्षों की गाथा, उनका जीवन-दर्शन और उनके सपनों का झारखंड—आज भी करोड़ों दिलों में धड़क रहा है।

1944 में रामगढ़ जिले के नेमरा गांव की मिट्टी से जन्मे एक साधारण किसान परिवार के बेटे ने जो असाधारण इतिहास रचा, वह सदियों तक झारखंड के लोग नहीं भूल पाएंगे। बचपन से ही अन्याय के खिलाफ विद्रोही तेवर, और पिता की हत्या ने जैसे जीवन का रास्ता बदल दिया। उन्होंने खुद को झारखंड के आदिवासियों के हक और अस्मिता की लड़ाई के लिए समर्पित कर दिया।

1972 में ‘झारखंड मुक्ति मोर्चा’ की स्थापना कर दिशोम गुरु ने पूरे राज्य में एक नई चेतना जगाई।
उनका ‘जोहार गुरुजी’ का नारा गांव-गांव, दिल-दिल में गूंजने लगा।

सड़क से संसद तक संघर्ष की गाथा
जंगल, जमीन और जल के अधिकार के लिए दशकों लंबा संघर्ष, और उसी संघर्ष की परिणति—सांसद के रूप में कई बार संसद में आवाज बनकर गूंजे, और तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी भी संभाली। लेकिन कभी भी सत्ता उन्हें नहीं बदल सकी—क्योंकि वे कुर्सी के नहीं, विचार के नेता थे।

सादा जीवन, माटी से रिश्ता
गुरुजी का जीवन वास्तव में सादा था—धोती, कुर्ता, खेत की सब्जियां और बांस के कोपलों की खुशबू में रचा-बसा। उन्होंने सत्ता के ऊंचे गलियारों में बैठकर भी कभी अपनी माटी से नाता नहीं तोड़ा। वे कहते थे, “मैं नेता नहीं, लोगों की आवाज हूं।”

अंतिम विदाई—झारखंड की आंखें नम
लंबी बीमारी के बाद उन्होंने दिल्ली में अंतिम सांस ली। उनका पार्थिव शरीर जब नेमरा गांव पहुंचा, तो पूरा झारखंड शोक में डूब गया। राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार हुआ। मुखाग्नि उनके पुत्र और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दी। उस क्षण करोड़ों आंखें नम थीं, और हर ओर से एक ही स्वर—“जोहार गुरुजी, आपका कर्ज कभी नहीं चुका पाएंगे…”

एक युग का अंत, पर विचारों की अमरता
गुरुजी चले गए, लेकिन उनके विचार, उनके संघर्ष, और उनके सपने इस माटी में, इस हवा में, इस आत्मा में हमेशा जीवित रहेंगे।

झारखंड उन्हें कभी नहीं भूलेगा।

वे केवल एक राजनेता नहीं थे—वे झारखंड की आत्मा थे।

जोहार गुरुजी। विनम्र श्रद्धांजलि।

कुसुम न्यूज़ रिपोर्ट

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