22 साल से जेल में बंद वासेपुर का गैंगस्टर फहीम खान, 16 साल बाद रिहाई को मंज़ूरी

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रांची (RANCHI): वासेपुर के चर्चित अपराधी फहीम खान को झारखंड हाईकोर्ट से महत्वपूर्ण राहत मिल गई है। अदालत ने शुक्रवार को फैसला सुनाते हुए निर्देश दिया कि फहीम खान को अगले छह हफ्तों के भीतर जेल से रिहा किया जाए। यह आदेश जस्टिस अनिल कुमार चौधरी की कोर्ट ने उसकी दायर याचिका पर सुनवाई के बाद जारी किया।

फहीम खान फिलहाल जमशेदपुर स्थित घाघीडीह केंद्रीय कारागार में कैद है, जहां वह वासेपुर निवासी सगीर हसन सिद्दीकी की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। उसने 29 नवंबर 2024 को हाईकोर्ट का रुख किया था और अपनी रिहाई की मांग की थी। उसकी ओर से सुप्रीम कोर्ट के वकील अजीत कुमार सिन्हा ने तर्क देते हुए बताया कि फहीम की उम्र 75 वर्ष पार कर चुकी है और वह कई गंभीर बीमारियों—जैसे हृदय रोग और किडनी संबंधी दिक्कतों—से जूझ रहा है।

अधिवक्ता का यह भी कहना था कि फहीम खान पिछले 22 वर्षों से अधिक समय से जेल में बंद है, ऐसे में उसकी आयु और स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए उसे “रिमिशन सेंटेंस” यानी सजा में छूट के तहत छोड़ा जाना चाहिए।

इससे पहले राज्य सरकार ने फहीम के मामले की समीक्षा के लिए एक रिव्यू बोर्ड बनाया था। बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में उसे समाज के लिए “संभावित खतरा” बताते हुए उसकी रिहाई की सिफारिश नहीं की थी। हालांकि, कोर्ट ने सुनवाई के दौरान फहीम की ओर से रखे गए तर्कों को अधिक महत्व देते हुए सरकार की आपत्तियों को नजरअंदाज किया और रिहाई के आदेश पर मुहर लगा दी।

फहीम खान का आपराधिक सफर काफी पुराना है। उसका नाम 1989 के वासेपुर हत्याकांड में पहली बार सामने आया था। 10 मई 1989 की रात सगीर हसन सिद्दीकी की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। गवाहों के अनुसार, सगीर अपने दोस्त आलमगीर के घर के बाहर बैठा था, तभी फहीम खान, छोटना उर्फ करीम खान और अरशद वहां पहुंचे और फहीम ने सगीर के सिर पर गोली दाग दी।

इस मामले में पुलिस ने तीनों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी। लेकिन 15 जून 1991 को सेशन कोर्ट ने सबूतों के अभाव में तीनों को बरी कर दिया। बिहार सरकार ने इस फैसले को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी, जहां निचली अदालत के निर्णय को पलटते हुए फहीम खान को उम्रकैद की सजा दी गई। फहीम ने यह सजा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन 21 अप्रैल 2011 को सर्वोच्च न्यायालय ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए उसकी आजीवन कारावास की सजा बरकरार रखी।

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