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“‘अजगर’ की रचनाओं से साहित्य जगत में नई दिशा देने वाले कथाकार नारायण सिंह का निधन”

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धनबाद (DHANBAD): हिंदी कथा-साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर और बहुआयामी रचनाकार नारायण सिंह का शनिवार सुबह पुणे में निधन हो गया। वे पिछले कुछ समय से गंभीर रूप से बीमार थे और 73 वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा कह गए।

1952 के 30 जनवरी को जन्मे नारायण सिंह ने अपनी चर्चित कहानी ‘अजगर’ के माध्यम से साहित्यिक हलकों में तुरंत पहचान हासिल की थी। प्रकाशित होने के बाद यह कहानी हिंदी कथा परंपरा में एक अलग ही हस्तक्षेप की तरह उभरी और उन्हें अग्रिम पंक्ति के लेखकों में स्थापित किया।

उनकी कहानियाँ और आलोचनात्मक लेखन न सिर्फ हिंदी बल्कि कई भारतीय भाषाओं और अंग्रेज़ी में भी अनूदित हुए। उनके साहित्यिक योगदान में तीन महत्वपूर्ण कहानी-संग्रह शामिल हैं—

  • तीसरा आदमी
  • पानी तथा अन्य कहानियाँ
  • माफ करो वासुदेव

साथ ही उनका चर्चित उपन्यास ‘ये धुआँ कहाँ से उठता है’ मजदूर जीवन की विडंबनाओं को गहरी संवेदना के साथ सामने लाता है।

आलोचना के क्षेत्र में भी उन्होंने तीन उल्लेखनीय ग्रंथ दिए—

  • सीता बनाम राम
  • सुन मेरे बंधु रे
  • फुटपाथ के सवाल

इसके अलावा, उन्होंने गांधीवादी नेता कांति मेहता की आत्मकथा ‘मेरा जीवन, मेरी कहानी’ का हिंदी रूपांतरण भी किया।

धनबाद में भारत कोकिंग कोल लिमिटेड से 2012 में अनुवादक तथा कोयला भारती पत्रिका के संपादक के रूप में सेवानिवृत्त होने के बाद वे स्वतंत्र लेखन में सक्रिय रहे और लगातार नई रचनाएँ करते रहे।

उनके निधन ने कोयलांचल के साहित्यिक परिवेश को गहरी क्षति पहुँचाई है। क्षेत्र के कई रचनाकार—अनवर शमीम, कुमार अशोक, लालदीप, श्याम बिहारी श्यामल, अली इमाम खान आदि—ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि नारायण सिंह की कहानियों में खदानों में काम करने वाले मजदूरों के जीवन की सच्ची तस्वीर मिलती है, जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।

साहित्य के साथ उनका झुकाव खेलों की ओर भी था। वे लंबे समय तक धनबाद क्रिकेट से जुड़े रहे और बोर्रागढ़ रिक्रियेशन क्लब (WRC) का संचालन संभालते रहे, जिसे अस्सी और नब्बे के दशक में एक मजबूत टीम के रूप में जाना जाता था

कुसुम न्यूज़ से निशा की रिपोट

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